bhaji ki chori
भाजी की चोरी-Bhaji ki chori - Short story
दो दोस्त जा रहे थे... उनमें से एक ने बोला यार आज तो भाजी खाने के मन कर रहा है (चने की भाजी-जब चना छोटा होता है तो उसकी गांव मे भाजी बनाते है)
तो दूसरा बोला हां यार भाजी खाने को मन तो हमाओ भी हो रओ पर अपनों खेत तो है नहीं कहां की खोटहे ,
(तभी उनके मन में विचार आयां कि दूसरें की भी तो खोट सकत तो चलों )
दोनों एक साथ वोलो चलों दूसरों के खेत की खोटवे चलें......
(दोनों भाजी खोटने के लिए जाते हैं भाजी का खेत ढूंढ़ते-ढूंढ़ते दोनों परेशान हो जाते है)
तभी उनमें से रीतेश नाम का लड़का बोला- अरें मनीष सुन तो
मनीष बोला क्या मनीष-मनीष लगा रखा बेसे ही तो भाजी को खेत नही मिल रहा तो परेशान है..तो दिमांग खराव हो रओ...
रीतेश बोला नायें हो तो देखों - भाजी को खेत
(दोनों बहुत खुश हो जाते हैं,,, कि अब उनकी इच्छा पूरी होने बाली हैं.... सोचकर खेत में घुस जाते है..... और भाजी खोटने लगते है.... भाजी इतनी ज्यादा खोट की ली जो साथ में पन्नी लायें थे वो फट गई )
रीतेश यार अपन जोन पन्नी लाये ते वह तो फट गई अब क्या करें।।
मनीष ने जबाव दिया हमें तो पहले ही पता था इसलिए मैं एक पन्नी और साथ में लाया था......
तभी मुझे घर से कॉल आता है, कि घर पर कोई भी सब्जी बनाने के लिए नही है... अर्जेंट जाओ और चने की भाजी खोट कर लाओ.....
मैनें कहा क्या भाजी मैने बोला क्या भाजी - हमपे भाजी आजी खोट तो बनता नही....
तो मुझे बोला गया की कही से भी लाओ कैसे भी लाऔ घर पर भाजी आ जाना चाहिए...
मैने कहा ठीक है तो कर रहे है कही से जुगाड़
मै जाता हूं भाजी का जुगाड़ करने घंटो परेशान होने के बाद भी भाजी का जुगाड़ नही हो पाता तभी मुझे दो लड़के एक खेत में भाजी खोटते नजर आते है... गैने सोचा क्यों न इनसें थोड़ी सी भाजी मांग ली जाएं मेरा जुगाड़ हो जायेगा.....
मैने उनको बुलाओ कि औये इधर आओ------
(अब बो दोनों घवरा गयें ओर घबरा कर बुलाने वाले के पास पहुंच गये.....)
मै कुछ बोलता इससे पहले ही वो बोले- मुझे मांफ कर दो मुझे पता नही था कि ये खेत आपका है, अगर मालुम होता तो इस खेत की भाजी हम कभी नही खोटते - हमें माफ कर दो सारी भाजी आप ही रख लों.....
(मैने सोचा हें...........ये सब क्या है, मै तो खुद भाजी के जुगाड़ में आया था और व्यवस्था अपने आप हो रही है तो क्याें ऐसा किया जाये कि इनको सच में ऐसा लगाया जायें कि यह खेत मेरा ही है.....)
मैने उनसे कहा तुम लोगों को शरम नही आती दूसरों के खेत से भाजी खोटते हुए तुम्हे पता नही है हम किसान खेत में फसल उगाने के लिए कितनी मेहनत करते है.... रात-रात भर इसको सींचते है और दिन-रात जानवरों से फसल बचाने के लिए खेत की रखवाली करने के लिए घर परिवार छोड़कर खेत में ही भटकते रहते है..... और हम एक पल के लिए इधर से उधर क्या हुए तुम लोग भाजी खोटने में लग गए.......
वो बोले हमें माफ कर दो दुवारा एसी गलती नही होगी, आप यह सारी रख लो और हमें जाने दो....
मैने कहा ठीक है लेकिन आगे से याद रखना, बोले ठीक है ..... और वहां से चले गए....
(मैंने सोचा अब मुझे भी चलना चाहिए ओर मैं भी वहां से निकल आता हूं ..... लेकिन ये क्या रीतेश व मनीष वही पास में ही जाकर छिप जाते है....और मेरे जाने का इंतजार कर रहे थे....)
मनीष न कहां ''चलो अब तो खेत को मालिक चला गया अब फिर से भाजी खोटहे लेकिन अबकी बार रखना नही है खोट-खोट उसी में से खाने''
रीतेश बोला ''रुको तो अबे उनखो दूर तो चले जाने दो''
(कुछ देर बाद दोंनो फिर से खेत में चले जाते है...और पेट भर भर के भाजी खाते है.....)
तभी विवेक (जो कि इस कहानी में खेत का असली मालिक है - सोचता है) चलो आज हार- खेत घूम आयें .....
(जैसे ही विवेक अपने खेत के सामने पहुंचता है ओर देखता है उसके खेत में दो लड़के भाजी खोटकर खा रहे हैं...)
विवेक उनको अपने पास बुलाता है- ''ओए तुम दोंनो यहा आओ''
(वे दोनों अबकी बार इतराकर बाहर निकलते हैं.......)
विवेकः तुम सब ही यहा भाजी खोटते रहते हो हम कबसे परेशान हे कि भाजी आखिर खोटता कौन है, लेकि आज मैने तुम्हे रंगे हाथों पकड़ है,
रीतेशः अरे तुम हो कौन यह सब पूछने वाले, हमारी इस खेत के मालिक से बात हो गई है, बोल खोट लो जितनी भाजी खोटना हो, चलो अपनो काम देखों ।
विवेकः अरे कौन मालिक, क्या बक रहे हो, हम ही तो इस खेत को असली मालिक,
मनीषः अच्छा तो वह जो अभी आये थे वे तुम्हारे भइया होगे,,,,
विवेकः क्या फालतू बात कर रहे हो मेरा कोई भाई-बाई नहीं है ।
मनीष और रीतेषः (दोनों एक साथ ) तब तो अपन लुट गये....
विवेकः मतलब
रीतेशः कोई हमें इस खेत का मालिक बताकर हमसे सारी भाजी ले गया ।
विवेकः पहले तुम लुट गये, अब हम से कुट गये....
(दे धराधड़ , दे धराधड़)