Amiyan Ki Chatani

Amiyon ki Chatni

अमियों की चटनी

(मनीष ऐसे ही बैठकर मोबाइल में कोई गेम खेल रहा था तभी आंसू नाम का लड़का बहा आया)

आंसूः और मनीष क्या कर रहे हो?

मनीषः कुछ नही यार ऐसे ही मोवाइल में गेम आ खेल रहे है, पेपर हते सो खत्म हो गयें, आ बैठो तुम कहा जा रहे हो

आंसूः कुछ नही यार चटनी के लाने अमिया ले वें जा रयें ।

मनीषः हा सो परेशान से कय लग रये, इस में का बडी बात है ।

आसूः परेशानी की ही तो बात है, इतनी दुपहरियां है, हम पे आम पे चड़ते बनत नइया, और पत्थर से निशाने नई घलत, दुपरियां में अकेले मे डर अलग से लगत, अब बताओ है परिशानी की बात के नई ;

मनीषः जा बात तो है, लेकिन उपाय है मेरे पास....

आसूः क्या ? जल्दी बताऔ यार !

मनीषः तुम आमई टोड़ वे ना जाओ बैसे भी क्या जरुरी है

आसूः अरे यार ये क्या बात हुई, जरूरी ही तो है, मम्मी ने बोली है जब तक हम अमियां घरे न ले जे हैं.... तव तक हमे घर मे घुस बे न मिल है, ऐई से कही से भी, कैसे भी अमियां लाना ही है....

मनीषः ऐसो सोई होत, ऐसई मजाक करत हुईए

आसूः अरे तुम जानत नईया हमाई मम्मी हो, जब तक वे अमियां की चटनी न खा लेवें तब तक उनकी गुस्सा शांत नही होत, और सबसे बड़ी समस्या जा है कि हमाओ मोबाइल भी घर में रह गओ, और मम्मी बोल रई, जब तक अमियां ने ले आ हो तो तब तक ने तो घर में घुस वे मिल है न ही मोबाइल मिल है । अरे यार इसलिए तुम चलो मेरे साथ में अमियां गिरानें में मदद करियों ।

मनीषः ठीक है, चलो तो बैसे भी अमियां-वमियां गिरबों हमायें बायें हाथ को खेल आयें, और फ्री तो है ही...और हमें भी अमियां की चटनी खावें को बहुत मन हो रओ....

आसूः चलो फिर, कुछ लें लो लाएंगे किसमें?

मनीषः तुम नई लाये क्या घर से ?

आसूः यार जल्दी में निकल आयें ध्यान ही नही रही?

मनीषः ठीक है ये रही तोलियां इसी में बांध ले आवी....

(दोनों आम टोड़ने के लिए चल पड़ते है, और एक आम के पेड़ के पास पहुंच जाते है, उसमें लगे आम देखकर उनके मुंह में पानी आने लगता है)

मनीषः देखों अमियां तो हम गिराये दे रये लेकिन इनको बटवारो हुईयें, आधा-आधा, ठीक है।

आसूः अरे यार, ये क्या बात हुई, दो-तीन तुम ले लईयों बाकी की हमें, इतनी आसान तो है,

मनीषः मंजूर हो तो ठीक है, नही तो हम नई टोर रयें, तुम खुद गिरा लों......

आसूः ठीक है तो रहन दो , हम खुद गिरा ले रये. अब दो-तीन में नई मान रये, तो हम ही न गिरा ले रये,

मनीषः सोच लो फिर,

आसूः सोच लिया

मनीषः ठीक है, तो हम अपनी तोलिया लेके जा रयें

आसूः अरे यार तोलियां तो दय जाओ, दो-तीन अमिया ऐई की ले लईयों

मनीषः नही, अब तो हमे तोलियां की ही आधी अमियां चाने, दे रये हो तो बताऔ,

आसूः मनीष अब दो तुम हमें फसा रयें मजबूरी को फायदा उठा रयें

मनीषः वो हम कुछ नही जानत, मंजूर हो तो बताऔ, न हम जा रयें

आसूः ठीक है, तुमई गिरा लो आधी-आधी कर लेवें।

मनीषः नही, अगर हम गिरा हे तो एक बटे तीन हिस्सा हुइये, एक हमाओ, एक तुमाओ, एक तोलिया को,

आसूः ठीक है, तो तुम चले जाओ, तोलियां की ही आधी अमिया ले लेना, अब ठीक है।

मनीषः ठीक है, हम जा रये लेकिन अच्छ से सोच लों

आसूः(सोचता है, मैं बोल दूंगा 4 अमियां गिरी तो 2 देनी पडेगी, ये रहेगा नही तो, इसको थोड़ी पता रहेगा कितनी गिराई, ये सही रहेगा.) हां ठीक है सोच लिया ।

मनीषः बो सब तो ठीक है लेकिन एक बात तुम्हे बता दे रयें , इस आम में एक आत्मा बसती है, जो रात में ओर दुपहरियां में किसी को अकेला देखकर निकलती है।

आसूः (डरते हुए) झूठी बोल रये नई, आत्मा-बात्मा कुछ नही होती

मनीषः ठीक है न मानों हम जा रये आधी अमिया लेते आईयों

आसूः मनीष एक काम करों, तुम रुक जाओ और तुम गिरा दो एक तिहाई मैं ले लूंगा, ठीक है।

मनीषः नही गिरानी ने तुम्हे ही पड़ेगी तो ही एक तिहाई लूंगा नही तो चार हिस्सा होगे, एक मेरे गिराने का एक, एक तोलियां का और एक मेरा यहां साथ रुकने का

आसूः अरे यार, अभी तो तुम इन सब के एक तिहाई मांग रये थे ।

मनीषः तो जब से टाइम तो खराव भी तो कर रये हमाऔ , तुम गिराओ तो ही एक तिहाई लूंगा नही तो चार मंजूर हो तो बताओ, नही तो मै जी रहा हूं ।

आसूः अरे मम्मी का सवाल नही होता तो बताता

मनीषः धमकी अब चोथा भाग सिर्फ साथ बैठने का लूंगा, गिराने का पांच भाग अकेला लूंगा ,

आसूः अरे यार भैया आप तो बुराई मान गयें , आप यहां बैठकर ही तीन हिस्सा ले लेना, ठीक है,

मनीषः नही अब तो सिर्फ और सिर्फ चार हिस्सा ही लेगें मंजूर हो तो बताओ नही तो जा रयें.

आसूः ठीक है, भैयै बैठ जाऔ चार हिस्सा ही ले लेना, मै गिरा दे रहा हूं।।।

( आसू आम गिराने के लिए पत्थर उठाता हे , लेकिन एक भी पत्थर आम में नही लगता है, और चढ़ने की कोशिश करता है, लेकिन चढ़ नही पाता मनीश यह सब देखकर देखकर मुस्कुराता है)

आसूः बैठे-बैठे मजा ने लेओ मजा न ले लेऔ, इते आऔ सो आम गिराओ

मनीषः ठीक है, आ तो जेहे मगर पांचवा हिस्सा चाने, मंजूर होए तो आ रये....

आसूः हऔ मालक, आ जा जाओ जितनी तिम्हे चाहिए, ले लेना बस गिरा तो दो ।

मनीषः अब आया हाथी पहाड़ के नीचे, पहले ही मान जाते तो आधी-आधी में बात बन जाती लेकिन नई,

आसूः अब रहन देऔ, हाथी पहाड़ पर नही चड़ता, उसे जवरदस्ती रगड़ा गया था, अब हमने भी सोच लई की कोशिश करने में क्या हर्ज है। अब नई गिरी तो नई गिरी, अब गिरा देऔ

(मनीष भी आम गिनाने के लिए पत्थर उठाता है, और निशाना मिलता है, और आम की ओर फेंकता है, लेकिन निशाना चूक जाता है..)

मनीषः रुको जरा शवर करो यह पहला पत्थर था, जरा हाथ हिल कर इधर-उधर हो गया था ।

(मनीष भी आम गिनाने के लिए दूसरा पत्थर उठाता है, और निशाना मिलता है, और आम की ओर फेंकता है, लेकिन निशाना फिर भी चूक जाता है.., फिर बार बार पत्थर उठाकर निशाना लगात है लेकिन निशाना बार-बार चूकता जाता है ।)

मनीषः (आसू की तरफ देखरकर खुद को दिलाशा दिलाते हुए) कोई बात नई, कोई बात नई, पिछली साल से आम नही गिरायें तो निशाना नही लग पा रहा है ।

आसूः मै थोड़ी कुछ कह रहा हूं, बस इतना समझ लो मुझे अमियों की बहुत जरुरत हैं। ऐसा करों तुम पर तो चड़ते आता है चड़कर टोड़ लाऔ

( मनीष एक दो और पत्थ्र फेकनें के असफल प्रयास के बाद पेड़ पर चड़ने की कोशिश करता है और अंततः चड़ने में सफल हो ही जाता है, ओर आम तोड़ने लगता है , कुछ आम ही तोड़पाये ओर कोई आ जाता है।

विशालः (आशु से) क्या कर रहे हो यहां पर

आशुः कुछ नही यार मम्मी हो अमियां की चटनी खानी खानी थी, तो अमियां तोड़वे आये थे ।

विशालः अच्छा कितनी तोड़ ली अभी तक

आशूः (गुस्से से) अरे यार दिमाग खराव तो न करों बड़ी मेहनत से तो वह मनीष आम पर चड़ पाओ ओर अभी तक 8-10 ही टूट पाई पूरी दुपहरियां निकल गई इतई

विशालः यह आम तुम्हारा है क्या?

आशूः नही,

विशालः तो किसी से तुमने पूछा कि तुम्हे आम तोड़ना है

आशूः नही,

विशालः तो फिर आम तोड़ बे आये कैसे जो आम को पेड़ मेरा है, (मनीष से) उतर नीचे अबे तक चड़े

आशूः अच्छा यह आपका पेड़ है लेकिन कैसे है तुम्हारा?

विशालः मेरे दादा जी के दादा जी ने घर पर एक आम खाया था और उसकी गुठली घर से बाहर फेंक दी, फिर एक कुत्ता आया उसने आम की बह गुठली खा ली, बह गुठली उस कुत्ते के गले में अटक गई, तो बह इसी जगह आकर कई दिनों तक पड़ा रहा और उसकी मौत हो गई, उसकी लाश यहा पड़ी-पड़ी सूख गई, और बह आम की गु़ठली निकल कर यही मिट्टी में दब गई, और गई दिनों तक दबी रही फिर बरसात आई, फिर उस गुठली में से आम के पौधे ने जन्म ले लिया, धीरे-धीरे वह पोधा पेड़ और आज बह पेड़ के रुप आपके सामने है, लेकिन उस कुत्ते की आत्मा आज भी इसी पेड़ के साथ जीवित है, इस प्रकार यह आम का पेड़ मेरा है

मनीषः ठीक है, मान लिया यह पेड़ तुम्हारा, तो हम पेड़ थोड़े ही उखाड़ कर ले जा रहे है, बस इसकी मम्मी को अमियां की चटनी खानी है, तो 10-20 अमियां ही तो तोड़नी है...

विशालः नही, यह नही हो सकता आम मेरा तो मै किसी को आम तोड़ने नही दूंगा, अब तुम लोगो ने जितने आम तोड़े है, उसके आधे मुझे दे दो और निकलो यहा से

आशूः (मन में अब क्या किया जाये) ठीक है, कर लो बटवारा नीचे रखो कितने आम है

(गिनने में पाया गया 10 आम ही टूटे है, तो 5 विशाल को दिये, 5 के 5 भाग हुए तो 4 मनीष को मिल गये, और आसू को मिला सिर्फ 1 आम बटवारा कर ही रहे थे तभी आवाज आई)

(भयानक आवाज) सभी अमियों को बही रख दो

विशालः (डरते हुए) कौन हो तुम, सामने आऔ

आत्माः मै कुत्ते की आत्मा, अगर किसी ने अमियां उठाई तो बह उसमें मेरी आत्मा आ जायेगी

आशूः ( मनीष से) मनीष तुमने तो कहा था, आत्मा तो अकेला देखकर आती है यहा तो 3 लोग है फिर भी आत्मा आ गई

हां हां हां, तीन तिगाड़ा , काम बिगाड़ा, जान प्यारी हो तो सारी अमियां यही छोड़कर भाग जाओ

आसूः ठीक है, एक अमियां मात्र ले लेने दो, मम्मी को अमियां की चटनी खानी है, नही तो मुझे घर में घुसने नही मिलेंगा, प्लीज इस अमियां के साथा मत आना

आत्माः ठीक है, एक ही अमियां उठाना

(आशू ने अमिया उठाई और सभी गायब, तभी आम के पीछे से एक आदमी निकलता है , जो आत्मा का नाटक कर रहा था, जिसके हाथ में एक साउण्ड था, जिससे वह डरवानी आवाज निकाल रहा था)

आत्मा रूपी आदमीः देखा मेरा कमाल मैने कैसे तीनों को आत्मा वनकर डरवा दिया, अच्छा हुआ मैनें इनकी बाते सुन ली थी, अब एक काम करता हूं, अमियां संगे तोलियां मिल ही गई, इसे उठाकर जल्दी से भाग जाता हूं ।

(जैसे ही आदमी तोलिया उठाने लगता हे तभी एक आवाज और आने लगती हे।)

कुत्ते की आत्माः औये बापस रख उसे,

आदमीः (साउण्ड की तरह देखते) कौन है वे सामने आऔ

कुत्ते की आत्माः इधर-उधर क्या देख रहै हो ऊपर देख

आदमीः (डरते हुए ऊपर देखते हुए) देखकर बेहोश

(ऊपर सच में कुत्ते की आत्मा थी)

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