Paiso ka Beg
लाखो रुपयें बैग
<( मनीष , विशाल और विक्रम एक जंगल में घूम रहे थे, तभी उन्हे आकास वाणी हुई की तुम लोगों को 10 लाख रुपये मिलेगें)
मनीषः कहां मिलेगें कोई बताओ तो सही
(अभी सीधे जाओ एक बड़े पत्थर के नीचे......)
विक्रमः पत्थर के नीचे चलो, चलो , चलो......
(आकाशवाणी, अभी रुको तो, उसकी जानकारी तो लेते जाओ पैसे कैसे मिलेगें.)
विशालः अब पता तो चल गया पत्थर के नीचे, अब कुछ नही सुनना बाये-बाये.
(तीनो विना जानकारी लिए चले जाते है, और बड़ा पत्थर ढूढंने लगते है, बहुत मेहनत करने के बाद)
विक्रमः ये पत्थर का ही पहाड़ ऐसे एक-एक के नीचे देखेंगे तो वर्षों लग जायेंगे पैसे ढूढ़ने में, एक काम करों, तीनो अलग-अलग जाओ जिसको पैसे मिल जायें बता देना, बराबर वांटेगें...
विशालः ठीक है चलों,
(तीनों पैसे ढूढ़ने लगते है, लेकिन बहुत मेहनत करने के बाद भी नही मिलता है.....तभी)
मनीषः सब इधर आओ,...... कुछ मिला हैं.....
(दोनों लगता है पैसे का बैग मिल गया, दोनों मनीष के पास चले जाते है)
विशालः कहां है पैसे का बैंग ?
मनीषः मनीष पैसे का बैंग तो नही मिला, ये मिला है, कागज का टुकड़ा
विक्रमः अच्छा पड़ो तो क्या लिखा है, उसमें
मनीषः इतनई पड़े लिखे होते तो, पहले ने पड़ लेते
विक्रमः अच्छा मैने पहले ही कहा था, थोड़ा पढ़ लो अगर पढ़े-लिखे होते तो आज तुम्हे किसी और से न पढ़वाना पढ़ता लाओ इधर लाओ
विक्रमः (लेटर लेने के बाद) लेओ विशाल पढ़ के सुनाओ
मनीषः कय तुमपे भी नई बनत
विक्रमः अरे बनत कय नईयां, तनक इन आंखो से कम आ दिखाई देत, और चश्मा इते लायें नईयां
विशालः दे ओ ना हो, आपको पैसे के की जानकारी, तेंदू के पेढ़ में मिलेंगी ।
विक्रमः क्या तेदूं का पेड़, पहलें पत्थरों के पहाड़ पर पत्थर ढुढ़वायां अव तेंदू के जंगल में तेदूं ढूंढना पड़ेगा
मनीषः मुझे तो लगता है पैसे-वैसे कुछ नही मिलेंगे, किसी ने हमे चूतियां बनाया
विक्रमः नही शायद, हमसे एक भूल हो गई, हमें आकाशवाणी पूरी सुननी चाहिए थी, लेकिन अब जैसा वता रहा है बेसा ही करों
विशालः अव क्या करना है कहां ढूंढे इस तेदू के जंगल में तेदूं का पेड़
(तीनों पैसे के लिए तेंदू का पेड़ ढूंढ़ने लगते है, बहुत देर बाद, एक तेंदुआ बहा आ जाता है, तोनो भागने लगते है, ओर भागते भागते एक तेंदूके पेढ़ के पास आ जाते है)
विक्रमः बाल-बाल बचें ढूढ़ रहे थे तेदूं ओर मिला ये तेदुंआ, मुझे तो लगता है मनीष ने ठीक ही कहा था हमें चूतियां बनाया गया हे तभी तो.......ये क्या है
(तभी विशाल की नजर, तेदूके पेड़ मे रखे कागज का टुकड़ा मिल जाता है)
विशालः कागज पढ़ते हुए, पैसे सिद्ध बाबा के मंदिर में मिलेंगे
विक्रमः सिध्द बाबा के उनका ये कहा है
मनीषः मुझे पता है, सिद्ध बाबा का मंदिर, खढ़ेरा टोरियां के पास हैं, उते तो अगहन और बेशाख की पूणियां को कई भंडारे आते है
विक्रमः भण्डारे क्या बात है, तो हमें तो जाना चाहिए, खेर अभी तो हमें पैसे से मतलब है, चलो मनीष, चले तो फिर
(जैसे ही तीनों मदिर पहुंचते है, वहां का चारो ओर का महोल देखकर खुश हो जाते है, ओर मंदिर जाकर चरण स्पर्श करते है ओर तीनों आंखे बंद करते है ओर उनके पास एक बैंग आ जाता है, जैसे ही विक्रम आंख खोलता है तो बेंग सामने , पड़ा देख लालच आ जाता है, ओर वेंग लेकर भाग जाता है, लेकिन वहा दूसरा बेंग आ जाता है, तो विशाल की आंख खुलते ही विशाल बेंग ले जाता हैं, अब मनीष आंख खोलता है ओर देखता है सामने बेंग है....)
मनीषः अरे वो दोनों कहां गये और सामने पड़े बेग को उठा लेता ओर देखता है बेंग पेसो से खचाखच भरा पड़ा हैं